आज की युवा नारी उस युग की कल्पना भी नहीं कर सकती कि किन-किन परिस्थियों में नारी शिक्षा रूपी पौधा पल्लवित हुआ; और इसके कर्णधार थे आर्य समाज के अग्रगण्य महापुरुष लाला देव राज जी सोंधी|
यह वह समय था जब नारी शिक्षा एक पाप कर्म जाना जाता था और किसी कन्या के हाथ में ‘अक्षर दीपिका’ का होना इतना बड़ा अपराध समझा जाता था कि उसकी सगाई तक टूट जाती थी| नारी शिक्षा के लिए प्रयत्न करने वालों को धर्म नाशक व देश घातक कह कर सामाजिक बहिष्कार तक किया जाता था |
ऐसे कठिन समय में लाला देव राज जी के अथक प्रयास से २६ दिसम्बर १८८६ के दिन १८’x १०’ किराए के कमरे को एक कन्या पाठशाला का रूप दिया गया| अपनी इस स्वर्णिम परिकल्पना को मूर्त रूप देने हेतु निस्वार्थ भाव, सच्ची लगन व स्तुति-निंदा की चिंता किए बिना घर-घर जाकर कन्याओं को पाठशाला भेजने हेतु प्रेरित करते| कई बार तो छोटी कन्याओं को अपने कंधों पर भी बिठा कर ले आते| लाला जी ने इस नारी शिक्षा कार्य को सफल बनाने के लिए आर्य समाज के दूसरे कार्यों से किनारा कर लिया| लाला जी के अन्थक कलापों से लाहौर के बाद जालंधर शिक्षा का केंद बना|
लाला जी के उस काल में किए गए ऐसे तप और साधना से उनके द्वारा रोपित व सींचित कन्या पाठशाला रूपी पौधा अपनी स्वर्णिम यात्रा देव राज शाखा विद्यालय से लेकर देवराज कन्या महाविद्यालया से होता हुआ आज देवराज गर्ल्ज़ सीनियर सैकेन्डरी स्कूल के रूप में विराट वृक्ष बनकर इतिहास रच चुका है| यह उत्तर भारत का सबसे पहला नारी शिक्षा केंद्र है| जालंधर शहर की कई गणमान्य नारी-शक्ति इस विद्यालय की छात्राएँ रह चुकी है|
देव राज गर्ल्ज़ सीनियर सैकेन्डरी स्कूल आर्य शिक्षा मण्डल द्वारा संचालित संस्थानो में से एक है| प्री-नर्सरी से लेकर १०+२ (आर्ट्स व कामर्स) छात्राएँ शिक्षा प्राप्त कर रही हैं|
पंजाब सरकार द्वारा ९५% अनुदान प्राप्त है| कर्मठ एवं योग्य अध्यापकगण बच्चों के सर्वपक्षीय विकास हेतु तत्पर रहते हैं|
माननीय प्रधान श्री चन्दर मोहन एवं महासचिव आलोक सोंधी जी के मार्ग-दर्शन एवं प्रिंसीपल श्रीमती सुनीता जी के निर्देशों पर आज यह विद्यालय अपनी आभा चारों ओर बिखेर रहा है|